कॉफी हाउस

बातें और कॉफी गरमागरम ही अच्छी लगती हैं। ठंडी हो जाएं तो बेकार हो जाती हैं। पर इन दोनों से भूख मिटती नहीं बल्कि बढ़ती है। इसीलिए लोग कॉफी हाउस में लंबी-लंबी बातें करते हैं और कई -कई कप कॉफी पीते हैं। कभी निंदारस से शुरू होने वाली यह बातें क्रांति पर खत्म होती हैं तो कभी क्रांति से शुरू हो कर हाथापाई तक आ जाती हैं। पर उनका अपना मजा है। टीवी चैनलों ने कॉफी हाउसों को उजाड़ा है हम चाहें तो उन्हें फिर से बसा सकते हैं।।

अरुण कुमार त्रिपाठी

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